कालभैरव मूर्ति ‘शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा । तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से कालभैरव की उत्पत्ति हुई। कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी। अतः कालभैरव को शिव का अवतार माना गया है और वे शिव-स्वरूप ही हैं I कालभैरव की पत्नी देवी पार्वती जी की अवतार हैं, जिन्हें भैरवी या कालभैरवी के नाम से जाना जाता है I कालभैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य कालभैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है। प्रस्तुत मूर्ति के दर्शन गोरखगड ट्रेक के दरम्यान की जा सकती है I यह मूर्ति यहां किसने और क्यू स्थापित की, इसका कोई ठोस सन्दर्भ त...