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Showing posts from February, 2022

दुर्गा मंदिर ( कुंड ), वाराणसी / Durga Mandir ( Kund ), Varanasi

दुर्गा मंदिर ( कुंड ), वाराणसी - उत्तरप्रदेश  इस मंदिर का निर्माण १८ वीं सदी में एक बंगाली महारानी ( रानी भवानी ) द्वारा किया गया था । यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के परिसर में ही एक विशाल कुंड ( तालाब ) भी है, जो पहले गंगा नदी से जुड़ा था। ऐसा माना जाता है कि देवी का मौजूदा प्रतीक किसी व्यक्ति द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि मंदिर में स्वयं प्रकट हुआ था। दुर्गा मंदिर ( कुंड ) के सन्दर्भ में देवी भागवत अध्याय २३ में एक कथा इस प्रकार है -  काशी नरेश ( वाराणसी के राजा ) ने अपनी बेटी शशिकला की विवाह के लिए स्वयंवर का आह्वान किया। बाद में राजा को पता चला कि राजकुमारी को एक वनवासी राजकुमार सुदर्शन से प्रेम हो गया है। इसलिए काशी नरेश ने गुपचुप और वैदिक तरीके से अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार सुदर्शन के साथ करवा दिया। जब अन्य राजाओं ( जिन्हें स्वयंवर के लिए आमंत्रित किया गया था ) को इस विवाह के बारे में पता चला, तो वे क्रोधित हो गए और काशी नरेश के साथ युद्ध करने निकल पड़े। देवी भक्त सुदर्शन ने तब माँ दुर्गा की आराधना की, जो एक सिंह पर सवार होकर आई और काशी

वाराणसी ( बनारस ) / Varanasi ( Banaras )

डायना एल सेक की किताब "बनारस - सिटी ऑफ लाइट" कहती है, वाराणसी का सबसे प्राचीन नाम काशी है। ये नाम करीब ३००० बरसों से बोला जा रहा है. तब काशी के बाहरी इलाकों में ईसा से ६०० साल पहले बुद्ध पहुंचे। बुद्ध की कहानियों में भी काशी नगरी का जिक्र आता रहा है। दरअसल काशी का नाम एक प्राचीन राजा काशा के नाम पर पड़ा, जिनके साम्राज्य में बाद में प्रसिद्ध और प्रतापी राजा दिवोदासा हुए। ये भी कहा जाता है कि पहले लंबी ऐसी घास होती थी, जिसके फूल सुनहरे के होते थे। जो नदी के किनारे फैले हुए जंगलों में बहुतायत में थी। सिटी ऑफ लाइट अर्थात काशी नगरीया - काशी को कई बार काशिका भी कहा गया। मतलब चमकता हुआ। ये माना गया कि भगवान शिव की नगरी होने के कारण ये हमेशा चमकती हुई थी। जिसे "कशाते" कहा गया यानि "सिटी ऑफ लाइट"। शायद इसीलिए इस नाम काशी हो गया। काशी शब्द का अर्थ उज्वल या दैदिप्यमान। वाराणसी नाम कैसे आया ? - वाराणसी भी प्राचीन नाम है। इसका उल्लेख बौद्ध जातक कथाओं और हिंदू पुराणों में भी है। महाभारत में कई बार इसका जिक्र हुआ है। दरअसल इसका पाली भाषा में जो नाम था वो थ

लिट्टी चोखा / Litti Chokha

कहते है ना की - "बिहार आके लिट्टी चोखा ना खैलं, त का खैलं हो !" लिट्टी चोखा को बिहार का सुप्रसिद्ध व्यंजन माना जाता है। बिहारी पहचान वाले इस व्यंजन को लोग चाव से खाते हैं। आज लिट्टी चोखा के स्टॉल हर शहर में दिख जाते हैं। लिट्टी चोखा खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, ये सेहत के लिए भी फायेदमंद है। बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश, झारखंड में भी लिट्टी चोखा अत्यंत प्रचलित है I गेहूं के आटे में सत्तू को भरकर इसे आग पर पकाया जाता है । फिर देसी घी में डुबोकर इसे खाया जाता है। जिन्हें कैलोरी की फिक्र है, वो बिना घी में डुबोये लिट्टी का स्वाद ले सकते हैं। तला-भुना नहीं होने की वजह से ये सेहत के लिए अच्छा है। इसे ज्यादातर बैंगन के चोखे के साथ खाया जाता है। बैंगन को आग में पकाकर उसमें टमाटर, मिर्च और मसाले को डालकर चोखा तैयार किया जाता है। बिहार में ये खासा लोकप्रिय है। इसे बनाना भी आसान है और ये पौष्टिक भी है। लिट्टी-चोखा का इतिहास मगध काल से जुड़ा है। कहा जाता है कि मगध साम्राज्य के दौरान लिट्टी चोखा प्रचलन में आया। बाद में ये मगध साम्राज्य से देश के दूसरे हिस्सों में भी

पुण्यावर पुस्तके / Books On Pune

" पुणे " या विषयवार आधारित काही मराठी पुस्तकांची यादी : १ . असे होते पुणे ( म. श्री.दीक्षित ) २ . मुठे काठचे पुणे ( प्र. के. घाणेकर ) ३ . पुणे शहरातील मंदिरे ( डॉ. शां. ग. महाजन ) ४ . सहली एक दिवसाच्या, परिसरात पुण्याचा ( प्र. के. घाणेकर ) ५ . सफर ऐतिहासिक पुण्याची ( संभाजी भोसले ) ६ . हरवलेले पुणे ( डॉ. अविनाश सोवनी ) ७ . पुण्यनगरीतील वाडे व वास्तु ( डॉ. एच. वाय. कुलकर्णी ) ८ . पेशव्यांचे अधिकृत निवासस्थान शनिवारवाडा ( प्र. के. घाणेकर) ९ . पुण्याची पर्वती ( प्र. के. घाणेकर ) १० . नावामागे दडलय काय ( सुप्रसाद पुराणिक ) ११ . पेशवेकालीन पुणे ( रा. ब. दत्तात्रय बळवंत पारसनीस ) १२ . पुणे एकेकाळी ( मंदार लावटे ) १३ . पुणं एक साठवण ( प्रा. श्याम भुर्के ) १४ . पुणे वर्णन ( ना. वि. जोशी ) १५ . हरवलेले पुणे ( ग. वा. बेहरे ) १६ . बदलते पुणे ( डॉ. मा. प. मंगुडकर  ) १७ . आठवणीतले  पुणे ( डॉ   एच. वाय. कुलकर्णी ) १८ . पुणेरी ( श्री. ज. जोशी ) १९ . झुंजार पुणे ( डॉ. के. के. चौधरी ) २० . पेशवेकालीन पुणे शहरातील कोतवाली ( प्रा. डॉ. पुष्कर रमेश शास्त्री ) २१ . भ