दुर्गा मंदिर ( कुंड ), वाराणसी - उत्तरप्रदेश
इस मंदिर का निर्माण १८ वीं सदी में एक बंगाली महारानी ( रानी भवानी ) द्वारा किया गया था । यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के परिसर में ही एक विशाल कुंड ( तालाब ) भी है, जो पहले गंगा नदी से जुड़ा था। ऐसा माना जाता है कि देवी का मौजूदा प्रतीक किसी व्यक्ति द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि मंदिर में स्वयं प्रकट हुआ था।
दुर्गा मंदिर ( कुंड ) के सन्दर्भ में देवी भागवत अध्याय २३ में एक कथा इस प्रकार है - काशी नरेश ( वाराणसी के राजा ) ने अपनी बेटी शशिकला की विवाह के लिए स्वयंवर का आह्वान किया। बाद में राजा को पता चला कि राजकुमारी को एक वनवासी राजकुमार सुदर्शन से प्रेम हो गया है। इसलिए काशी नरेश ने गुपचुप और वैदिक तरीके से अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार सुदर्शन के साथ करवा दिया।
दुर्गा मंदिर ( कुंड ) के सन्दर्भ में देवी भागवत अध्याय २३ में एक कथा इस प्रकार है - काशी नरेश ( वाराणसी के राजा ) ने अपनी बेटी शशिकला की विवाह के लिए स्वयंवर का आह्वान किया। बाद में राजा को पता चला कि राजकुमारी को एक वनवासी राजकुमार सुदर्शन से प्रेम हो गया है। इसलिए काशी नरेश ने गुपचुप और वैदिक तरीके से अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार सुदर्शन के साथ करवा दिया।
जब अन्य राजाओं ( जिन्हें स्वयंवर के लिए आमंत्रित किया गया था ) को इस विवाह के बारे में पता चला, तो वे क्रोधित हो गए और काशी नरेश के साथ युद्ध करने निकल पड़े। देवी भक्त सुदर्शन ने तब माँ दुर्गा की आराधना की, जो एक सिंह पर सवार होकर आई और काशी नरेश और सुदर्शन की ओर से युद्ध लड़ा। युद्ध के बाद काशी नरेश ने माता दुर्गा से वाराणसी की रक्षा करने की याचना की और इसी विश्वास के साथ उन्हें इसी स्थान पर रहने के लिए कहा।
मान्यता है कि देवी भागवत में वर्णित कथा के अनुसार जगदंबा दुर्गा मंदिर इसी कुंड पर स्थित है। यहां स्थित इस मंदिर को नौ देवियों में चतुर्थ कुशमांडा के रूप मे भी मान्यता प्राप्त है।
सौजन्य - पर्यटन विभाग, वाराणसी - उत्तर प्रदेश
मान्यता है कि देवी भागवत में वर्णित कथा के अनुसार जगदंबा दुर्गा मंदिर इसी कुंड पर स्थित है। यहां स्थित इस मंदिर को नौ देवियों में चतुर्थ कुशमांडा के रूप मे भी मान्यता प्राप्त है।
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