लिट्टी चोखा को बिहार का सुप्रसिद्ध व्यंजन माना जाता है। बिहारी पहचान वाले इस व्यंजन को लोग चाव से खाते हैं। आज लिट्टी चोखा के स्टॉल हर शहर में दिख जाते हैं। लिट्टी चोखा खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, ये सेहत के लिए भी फायेदमंद है। बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश, झारखंड में भी लिट्टी चोखा अत्यंत प्रचलित है I
गेहूं के आटे में सत्तू को भरकर इसे आग पर पकाया जाता है । फिर देसी घी में डुबोकर इसे खाया जाता है। जिन्हें कैलोरी की फिक्र है, वो बिना घी में डुबोये लिट्टी का स्वाद ले सकते हैं। तला-भुना नहीं होने की वजह से ये सेहत के लिए अच्छा है। इसे ज्यादातर बैंगन के चोखे के साथ खाया जाता है। बैंगन को आग में पकाकर उसमें टमाटर, मिर्च और मसाले को डालकर चोखा तैयार किया जाता है। बिहार में ये खासा लोकप्रिय है। इसे बनाना भी आसान है और ये पौष्टिक भी है।
लिट्टी-चोखा का इतिहास मगध काल से जुड़ा है। कहा जाता है कि मगध साम्राज्य के दौरान लिट्टी चोखा प्रचलन में आया। बाद में ये मगध साम्राज्य से देश के दूसरे हिस्सों में भी फैला।
लिट्टी-चोखा का जिक्र मुगल काल में भी मिलता है। लेकिन इस दौर में इसका स्वाद बदल गया। मुगल काल में मांसाहार ज्यादा प्रचलित था। इस दौर में लिट्टी के साथ शोरबा और पाया खाने का प्रचलन शुरू हुआ।
इसी तरह ब्रिटिश शासन के दौरान भी इसमें तब्दिली आई। अंग्रेजों ने अपनी पसंदीदा करी के साथ लिट्टी का स्वाद लिया। जैसे-जैसे वक्त बदलता गया, लिट्टी चोखा को लेकर नए-नए प्रयोग भी होते गए।
लिट्टी चोखा को युद्ध का खाना भी कहा जाता है। प्राचीन काल से युद्ध के दौरान सैनिक खाने के सामान के तौर पर लिट्टी लेकर चलते थे। १८५७ के विद्रोह में सैनिकों के लिट्टी चोखा खाने का जिक्र मिलता है। तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई ने इसे अपने सैनिकों के खाने के तौर पर चुना था। इसे "फूड फॉर सरवाइवल ( Food For Survival )" भी कहा जाता है। इसे बनाने के लिए किसी बर्तन की जरूरत नहीं है, इसमें पानी भी कम लगता है और ये सुपाच्य और पौष्टिक भी है। सैनिकों को इससे लड़ने की ताकत मिलती। लिट्टी की खासियत है कि ये जल्दी खराब नहीं होता।
इतना ही नहीं, बल्कि महर्षि विश्वामित्र की धरती और 'मिनी काशी' के नाम से जाने वाले वाले बिहार के बक्सर में हर साल मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से पंचकोस मेले की शुरुआत होती है। ५ दिनों तक चलने वाले इस मेले को पंचकोस या 'लिट्टी-चोखा' मेले ( Litti Chokha Fair ) के नाम से जाना जाता है।
स्त्रोत : जागरण ( इ-पेपर )
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