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वाराणसी ( बनारस ) / Varanasi ( Banaras )


डायना एल सेक की किताब "बनारस - सिटी ऑफ लाइट" कहती है, वाराणसी का सबसे प्राचीन नाम काशी है। ये नाम करीब ३००० बरसों से बोला जा रहा है. तब काशी के बाहरी इलाकों में ईसा से ६०० साल पहले बुद्ध पहुंचे। बुद्ध की कहानियों में भी काशी नगरी का जिक्र आता रहा है। दरअसल काशी का नाम एक प्राचीन राजा काशा के नाम पर पड़ा, जिनके साम्राज्य में बाद में प्रसिद्ध और प्रतापी राजा दिवोदासा हुए। ये भी कहा जाता है कि पहले लंबी ऐसी घास होती थी, जिसके फूल सुनहरे के होते थे। जो नदी के किनारे फैले हुए जंगलों में बहुतायत में थी।

सिटी ऑफ लाइट अर्थात काशी नगरीया - काशी को कई बार काशिका भी कहा गया। मतलब चमकता हुआ। ये माना गया कि भगवान शिव की नगरी होने के कारण ये हमेशा चमकती हुई थी। जिसे "कशाते" कहा गया यानि "सिटी ऑफ लाइट"। शायद इसीलिए इस नाम काशी हो गया। काशी शब्द का अर्थ उज्वल या दैदिप्यमान।

वाराणसी नाम कैसे आया ? - वाराणसी भी प्राचीन नाम है। इसका उल्लेख बौद्ध जातक कथाओं और हिंदू पुराणों में भी है। महाभारत में कई बार इसका जिक्र हुआ है। दरअसल इसका पाली भाषा में जो नाम था वो था बनारसी। जो टूटते-फूटते हुए बनारस नाम बन गया। ये शहर बनारस के नाम से ही अधिक जाना जाता है। बेशक आधिकारिक तौर पर अब इसका नाम वाराणसी है।

मुग़लों और अंग्रेजों के समय भी बनारस का जिक्र है - मुगलों के शासन और फिर अंग्रेजों के शासनकाल में इसका नाम बनारस ही रहा, लेकिन आजाद भारत में इसका आधिकारिक नाम हुआ वाराणसी। कोई भी बनारसी यही कहेगा कि चूंकि इस शहर के एक ओर वरुणा नदी है, जो उत्तर में गंगा में मिल जाती है और दूसरी ओर असि नदी। लिहाजा इन नदियों के बीच होने के कारण इसका नाम वाराणसी कहलाया।

पुराण क्या कहते हैं ? - पदमपुराण कहता है, वरुणा और असि दो नदियां हैं। उन्हें भगवान ने बनाया औऱ उसके बीच ये पवित्र भूमि। दुनिया में जिससे बेहतर कोई जगह नहीं है। कुर्मा पुराण में सीधे सीधे लिखा है, वाराणसी वो शहर है जो वरुणा और असि नदियों के बीच है। हालांकि कुछ पुराना साहित्य ये भी कहता है कि वरुणा और असि नहीं बल्कि शहर के उत्तर में किसी जमाने में अकेली नदी बहती थी, जिसका नाम था रणासि, जिसका नाम हो सकता है कि बाद में वरुणा पड़ा हो।

पुरातात्विक दावा - पुरातत्त्व का माने तो राजघाट ही वो जगह है जहां रणासि नदी का मेल गंगा नदी से हुआ। शायद ये शहर वाराणसी नदी के दोनों ओर ही बसा होगा। ये गंगा के किनारे नहीं फैला होगा।

शासकीय तौर पर कब हुआ वाराणसी का नामकरण ? - वाराणसी नाम का उल्लेख मत्स्य पुराण, शिव पुराण में भी मिलता है, किन्तु लोकोउच्चारण में यह 'बनारस' नाम से प्रचलित था, जिसे ब्रिटिश काल मे 'बेनारस' कहा जाने लगा। आखिरकार २४ मई १९५६ को शासकीय तौर पर इसका नाम फिर वाराणसी कर दिया गया।

कई नाम से जाना जाता था बनारस - ये शिव नगरी अलग अलग समय में और अलग लोगों द्वारा अलग नामों से जानी गई। इसके कई नाम हैं. जैसे - काशी, काशिक, बनारस, वाराणसी, वाराणशी, अविमुक्त, आनंदवन, रुद्रवास।

आजादी के पहले का बनारस - आजादी के पहले जब भारत में करीब ५६५ देशी रजवाड़े अस्तित्व में थे, उन्हीं में एक था बनारस। बनारस के राजा काशी नरेश या बनारस नरेश या काशी राज कहा जाता था। १५ अगस्त १९४७ से पहले ही बनारस के तत्कालीन महाराजा विभूतिनारायण सिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के पत्र का हस्ताक्षर कर दिए। आजादी के बाद जब उत्तर प्रदेश बना तो इसमें टिहरी गढ़वाल, रामपुर और बनारस रियासत को मिलाया गया। तब बनारस के जाने माने कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश ने बनारस का नाम बदलने की मांग करते हुए इसे इसका प्राचीन नाम देने की बात की। श्रीप्रकाश बाद में असम के राज्यपाल बनाए गए। तब इस बात का जिक्र हुआ कि इस प्राचीन शहर का नाम काशी या वाराणसी होना चाहिए। तब श्रीप्रकाश ने सरदार पटेल और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को इस बारे में कई पत्र लिखे।

संपूर्णानंद ने वाराणसी नाम पर मुहर लगाई थी - असल में जब इस शहर का नाम २४ मई १९५६ को बदला गया तो उसमें मुख्य भूमिका संपूर्णानंद की थी। वो तब तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे। उनका खुद का रिश्ता बनारस से था। संस्कृत के विद्वान इस नेता ने बनारस की जगह ज्यादा संस्कृतनिष्ठ नाम वाराणसी का चयन किया।

स्त्रोत - hindi.news18

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