पोहा
पोहा एक ऐसी डिश है जो महाराष्ट्र, गुजरात और सबसे अधिक एमपी में बड़े ही चाव से खाई जाती है । इसमें भी इंदौरी पोहा तो विश्व विख्यात है । इंदौर के लोगों में पोहे की दीवानगी ऐसी है कि कुछ लोगों का कहना है कि एक इंदौरी सपने में प्रेमिका से अधिक पोहे को ही देखता है । आखिर ऐसा हो भी क्यों न ! झटपट तैयार हो जाने वाला पोहा होता ही इतना स्वादिष्ट है कि इसे खाए बिना कोई रह ही नहीं पाता । अब तो न्यूट्रीशियन्स भी नाश्ते में पोहा खाने की सलाह देने लगे हैं ।
कभी सोचा है कि जब पोहा इतना विख्यात है तो इसका इतिहास कितना दिलचस्प होगा । अकसर लोग कॉर्न फ्लेक्स ( Corn Flakes ) से पोहे की तुलना करते हैं, जिसे दूध में भीगो कर खाया जाता है । कुछ लोग मानते हैं कि कॉर्न फ्लेक्स की खोज करने वाले बंधुओं ने ही इसकी खोज की होगी । लेकिन इसका इतिहास उससे भी कहीं पुराना है ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सुदामा जब कृष्ण से मिलने द्वारका गए थे, तब वो अपने साथ पोहा ही लेकर गए थे । इसके अलावा पोहे का ज़िक्र पराधीन भारत के इतिहास में भी मिलता है । टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1846 में जब भी भारतीय सैनिकों को पानी के जहाज़ के ज़रिये कहीं और भेजा जाता था , तब उनके खाने में पोहा हुआ करता था ।
पोहे को अंग्रेज़ शासक सैनिकों का एक सम्पूर्ण आहार मानते थे । साथ ही इसे बनाना भी आसान था । आज़ाद भारत की बात करें तो एक बार इस पर बैन भी लग चुका है । दरअसल , 1960 में चावल की कमी होने जाने के कारण सरकार को पोहा बनाने पर बैन लगाना पड़ा था ।
हमारे देश में पोहा लोगों को इतना पसंद है कि हर साल 7 जून को पोहा दिवस भी मनाया जाता है । पोहा पूरे देश में खाया जाता है । इसलिए इसे अलग-अलग नाम से भी पुकारा जाता है । जैसे चिवड़ा, चपटा चावल, चिड़ा, चिउरा, अवल, अटुकुल्लू इत्यादी ।
एक बात और , यात्रियों और ट्रेक करनेवालों के लिए पोहा तो उत्तम आहार है ।
- जे पी गुप्ता ✍
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