सती रमाबाई पेशवा स्मारक , थेउर
पुणे के हड़पसर गांव से २२ किमी की दूरी पर स्थित थेउर गांव में गणेश चिंतामणी मंदिर है। इसी परिसर से १-२ किमी की दूरी पर स्वर्गीय रमाबाई माधवराव पेशवा का स्मारक बनाया गया है। इसी स्मारक के के समक्ष गणेशजी की मूर्ति भी है। स्मारक के दाहिने ओर स्माशन भूमि भी स्थित है। हालाकि इस जगह का ज्ञान काफी कम लोगो को है। यह स्मारक मुला-मुठा नदी के तट पर बनाया गया है।
इतिहास
रमाबाई पेशवा ( १७५०-१७७२ ) , ( प्रथम ) माधवराव पेशवा की पत्नी थी। उनका विवाह ९ दिसंबर १७५८ को माधवराव पेशवा के साथ पुणे में हुआ था। वह सोलापूर के शिवाजी जोशी की पुत्री थी। वह एक धार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रवित्ती वाली महिला थी। वह हमेशा श्रीवर्धन-हरिहरेश्वर जैसे तीर्थयात्राओ पर जाती रहती थी। उन्होने सामाजिक या राजनीतिक मामलों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया। वह हमेशा माधवराव के लिए उपवास रखा करती थी। इस दंपति को कोई संतान नहीं थी। १७६६-१७६७ में कर्नाटक अभियान के दौरान वह माधवराव के साथ ही थी। इसी अभियान के दौरान माधवराव के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ने लगा था।
जून १७७० में, माधवराव पेशवा तीसरी बार हैदर अली को जीतने के लिए निकले पड़े। हालांकि, माधवराव तपेदिक ( क्षय रोग ) से संक्रमित थे। तपेदिक को "राज-यक्ष्मा" या बीमारियों का राजकुमार भी कहा जाता है। माधवराव को मिराज से लौटना पड़ा क्योंकि बीमारी का प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर बढ़ने लगा था। इस भयानक बीमारी के इलाज के लिए एक अंग्रेजी चिकित्सक की भी सिफारिश की गई थी। हालाँकि, स्वास्थ्य में सुधार के कोई संकेत नहीं थे और धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य और भी बिगड़ने लगा था। उस समय में तपेदिक का कोई इलाज नहीं था। १७७२ में जब रमाबाई तीर्थयात्रा के लिए हरिहरेश्वर गई थी , तब इसी के दौरान माधवराव की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई।
माधवराव ने अपने अंतिम दिनों को अपने पसंदीदा जगह गणेश चिंतामणि मंदिर, थेउर में बिताने का फैसला किया। उन्होंने इस पसंदीदा मंदिर के बाहर एक बगीचा, एक लकड़ी का हॉल और एक फव्वारा बनवाया था। १८ नवंबर १७७२ को माधवराव की पुणे के थेउर गांव के गणेश चिंतामणी मंदिर के परिसर में मृत्यु हो गई। हजारों नागरिकों एवं सहपाठियों ने अपने प्रिय दिवंगत पेशवा को आदरपूर्वक अंतिम सम्मान दिया। माधवराव की मृत्यु के बाद रमाबाई ने सती होने का निश्चय किया। आनंदीबाई , राघोबा भाऊ , पार्वतीबाईं सहित अनेक पेशवा के परिवारों ने उन्हें सती ना करने के लिए आग्रह किया। लेकिन रमाबाई अपने निश्चय पर अटल ही रही।
माधवराव का अंतिम संस्कार मुला-मुठा नदी के तट पर किया गया, जो थेउर गांव से लगभग १-२ किमी की दूरी पर है। ठीक उन्हीं के चिता के साथ रमाबाई ने भी अपने सती बनने के अटल निश्चय को पूरा किया था। ऐसे महान पेशवा और उनकी प्यारी पत्नी के सम्मान एवं स्मरण के रूप में एक छोटासा स्मारक ( समाधी ) बनवाया गया , जो आज भी हमे इस स्थान पर देखने को मिलता है।
रंजीत देसाई द्वारा लिखित एक उपन्यास " स्वामी " में रमाबाई माधवराव पेशवा के चरित्र का वर्णन मिलता है।
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